रणनीतिक संचार संदर्भ सामग्री – भाग 7

सुनना, संवाद करना और सीखना?

सामाजिक संस्थाओं ने समाज में बदलाव का जो स्वप्न देखा है, वह सबका साझा तभी बन सकता है जब समुदाय स्वयं उस परिवर्तन का नेतृत्व करे।

यह तभी होगा जब सामाजिक कार्यकर्ता समुदाय की बातों को सुने, उनसे चर्चा करे और हर जरूरी सीख को अपनाए। सामुदायिक प्रशिक्षण या बैठक के दौरान हर सहभागी की बातों को गौर से सुन जाना चाहिए। उनके अनुभव और उनकी चुनौतियां संस्थाओं को जमीनी परिस्थितियों का आकलन करने में सहायक हो सकती हैं।

संवाद को संवाद ही रहने दें उसे कभी बहस न बनने दें। ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार अपनी बात मनवाने की जिद में कटुती की ओर ले जाती है जबकि संवाद बातचीत के लिए जरूरी खुलापन लिए होता है। संवाद के दौरान पूर्वाग्रह न बनाएं, मतभेदों का सम्मान करें तथा संवाद की प्रक्रिया का अगला चरण है अभिमत अर्थात फीडबैक देना। किसी भी काम के बारे में दिया गया अभिमत उसे बेहतर बनाने मे मदद करता है। सार्वजनिक अभिमत में सराहना का भाव रखें जबकि आलोचनात्मक टिप्पणी भरसक अकेले में करने का प्रयास करें। संवादों का दस्तावेजीकरण करें, यह भविष्य में विश्लेषण अथवा अवलोकन में सहायक होता है।

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