विचार
सामाजिक संस्थाओं को आत्म विश्लेषण की जरूरत : भाग 1
यह माना जा सकता है कि सामाजिक नागरिक संस्थाओं की अवधारणा का उदय समाज की आकांक्षाओं, उसके आभासों, विरोधाभासों, संगति और विसंगतियों का एक साथ संज्ञान लेते हुए समतामूलक, न्यायपरक और मानवीय मूल्यों से संचालित होने वाला समाज बनाने के उद्देश्य से हुआ है। जब समान विचारों के कुछ लोग एक साथ मिलते हैं, संगठित होते हैं और साझा पहल करने का वायदा करते हैं, तब सामाजिक नागरिक संस्था का उदय होता है।
सामाजिक संस्थाओं को आत्म विश्लेषण की जरूरत : भाग 2
हमारा पहला अनुभव यह रहा है कि सामाजिक नागरिक संस्थाओं में अपने स्वयं के होने के कारण, अपनी भूमिका के बारे में सोचना बंद कर देते हैं। शायद यह भी कह सकता हूँ कि उसके बारे में सोचना शुरू ही नहीं करते हैं। जब मैं “भूमिका” शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूँ, तो इसका मतलब है सामाजिक नागरिक संस्थाएं अस्तित्व में क्यों आती हैं? जब राज्य है, जब बाजार है और जब समाज भी है, तब सामाजिक नागरिक संस्थाओं के होने का क्या मतलब है?