
भारत में समाज और व्यवस्थाओं को एक सार्थक रूप प्रदान करने में सामाजिक नागरिक संस्थाओं की रचनात्मक और प्रभावकारी भूमिका रही है। यह समय है जब संस्थाओं को अपने अस्तित्व की महत्ता समाज को महसूस करवाने की जरूरत है।
यह प्रवेशिका संस्था के मायने और आवश्यक दृष्टिकोण पर आधारित है। इसका स्पष्ट मकसद सामाजिक नागरिक संस्थाओं के बारे में जवाबदेय और रचनात्मक कथानक बनाने की कोशिश करना है। यह बेहद जरूरी है कि हम लोकतान्त्रिक और सभ्य व्यवस्था में नागरिक पहल और नागरिक संस्थाओं के वजूद को न केवल स्वीकार करें, बल्कि उनके संरक्षण के लिए निजी और संस्थागत स्तर पर पहल भी करें।
इस प्रवेशिका में संस्थाओं की उभरती भूमिका, उनकी चुनौतियों और आवश्यक रणनीतिक संचार पर केंद्रित अवधारणाओं की बेहतर समझ बनाने के लिए उपयुक्त पठनीय सामग्री प्रस्तुत की गई है।
यह किताब पहला चरण है। दूसरा चरण है आपका पहल के लिए तैयार होना और अपने स्तर पर अपने लिए योजना बनाना। तीसरा चरण है एक दूसरे का साथ-सहयोग लेना। अगर इस किताब को व्यावहारिक रूप में लागू करने की आपकी योजना में सहभागी हो सकते हैं, तो हमें बताइएगा।