
सामाजिक संस्थाएं जो काम करती हैं उनके बारे में सरकार, जनप्रतिनिधियों और व्यापक समाज के विभिन्न हिस्सों को जानकारी देने में सोशल मीडिया यहां भूमिका निभाता है।
सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से जो भी जमीनी बदलाव आता है अक्सर उसकी जानकारी संस्थाओं और लक्षित समुदाय तक सीमित रह जाती है। सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से यह जानकारी स्थान विशेष की सीमाओं से परे जाकर राष्ट्रीय और कई बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रसारित होती है। इस तरह सामाजिक बदलाव के कामों का व्यापक प्रचार प्रसार संभव होता है।
इस तकनीक सक्षम युग में फेसबुक, लिंक्डइन, ट्विटर, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ब्लॉग, स्नैपचैट आदि अनेक सोशल मीडिया माध्यम उपलब्ध हैं। सामाजिक संस्थाओं को अपनी आवश्यकता के मुताबिक उनका चयन करना चाहिए। उदाहरण के लिए संदेश की प्रकृति कैसी है? उसका स्वरूप क्या है? लक्षित समूह क्या है? इन सब बातों के आधार पर ही तय करना चाहिए कि संदेश लिखित होगा, आँडियो होगा या वीडियो, बड़े आकार का होगा या संक्षेप में… वगैरह।
सोशल मीडिया पर पूरी तैयारी से जाएं। यहां तैयारी से अर्थ है: लक्षित समूह की पहचान, संदेश की स्पष्टता, संदेश की प्रसंगिकता, उसे जारी करने में निरन्तरता आदि। सोशल मीडिया पोस्ट कभी एकतरफा न हो बल्कि हमेशा संवाद की गुंजाइश रखें। इससे संस्था की छवि को पारदर्शी और सकारात्मक बनाने में मदद मिलती है।