जनवरी 2025

सूखे गांव जो पानीदार हो गए

महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र हमेशा से जलसंकट से घिरा रहा है। पानी फाउंडेशन द्वारा की गई पहल से इस अंचल के कई गांवों में पानी सहेजने को लेकर जागरूकता में वृद्धि हुई है और इसके सकारात्मक परिणाम सामने भी आने लगे हैं। अब वर्ष में 10 महीने इन गांवों में पानी उपलब्ध रहता है।

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खेती में देसी बीजों की वापसी

भारत के प्रत्येक कृषि अंचल में अपनी भौगोलिक एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों की दृष्टिगत स्थानीय कृषि पद्धतियां और बीज विकसित किए हैं। झाबुआ स्थित संपर्क संस्था ने इन्हीं देसी बीजों के संरक्षण के लिए सामुदायिक बीज बैंक बनाया गया है।

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ऊंट, ऊंटपालक और आजीविका बचाने की पहल

रेगिस्तान में ऊंट की अनिवार्यता को कभी भी नकारा नहीं जा सकता। लेकिन बढ़ते मशीनीकरण से ऊंटों पर ही संकट दिखाई दे रहा है। ऐसे में राजस्थान में काम कर रही संस्था उरमूल की तकनीकी व नीति सलाहकार संस्था डिजर्ट रिसोर्स सेंटर की पहल काफी रोचक है।

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भड़ाज गांव बना हाईटेक खेती का रोल मॉडल

जब सूखे और पलायन के लिए कुख्यात भड़ाज गांव के लोग अखबार वालों के पास अपनी खबर छपवाने पहुंचे तो सशंकित पत्रकारों को विश्वास नहीं हुआ। कुछ दिन बाद पत्रकार आए, गांव और खेती देखी और ग्रामीणों से बात की। उन्हीं ने प्रमुखता के साथ पहले पन्ने पर यह खबर छापी। अपनी कर्मठता से यह गांव आज आसपास लोगों की चर्चा में है।

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स्वच्छ रहें, स्वस्थ रहें

राजस्थान के बाड़मेर जिले के दूरस्थ गांव देदावास में प्रचलित अंधविश्वासों के कारण आज भी कई परिवारों के साथ स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को लेकर काम करने की जरूरत है।

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